विधानसभा में खास लोगों को दी नौकरी, अब कार्रवाई का निर्देश
विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति में हुई गड़बड़ी के मामले में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने विस अध्यक्ष दिनेश उरांव के पास विक्रमादित्य आयोग की जांच रिपोर्ट भेज दी है। उन्होंने अध्यक्ष को आयोग की अनुशंसाओं के आलोक में आगे की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। ये नियुक्तियां-प्रोन्नतियां तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, आलमगीर आलम और शशांक शेखर भोक्ता के कार्यकाल में हुई थीं।
आयोग ने नियुक्ति-प्रोन्नति में गड़बड़ी की पुष्टि करते हुए दोषी पदाधिकारियों पर कार्रवाई की अनुशंसा की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मनमानी नियुक्ति-प्रोन्नति के लिए समय-समय पर नियमावली में इसकी अनुपात को घटाया-बढ़ाया गया, जिससे योग्य व्यक्ति को नियुक्ति से वंचित रहना पड़ा। इसके अलावा 2003 में राज्यपाल द्वारा अनुमोदित नियमावली में परिवर्तन कर ऊपर के पदाधिकारियों को गुरुत्तर दायित्व भत्ता का लाभ दिया गया। इसके लिए तत्कालीन प्रभारी सचिव अमरनाथ झा को जिम्मेवार ठहराया गया है। साथ ही पदाधिकारियों से भत्ते की राशि वसूल करने की अनुशंसा की गई है।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नियुक्ति-प्रोन्नति में आरक्षण नीति का पालन नहीं किया गया। 2013 से पहले कई बार आरक्षित कोटि में गैर आरक्षित कोटि के कर्मियों को प्रोन्नति दी गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत विवेचना कर नियुक्तियां की गई और अस्थायी कर्मियों की सेवा नियमित की गई। नियुक्ति में सभी उम्मीदवारों के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं किया गया। कुछ खास लोगों के उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए नियम का उल्लघंन किया गया। यह बात एक परीक्षक ने आयोग के समक्ष स्वीकर की है।
अनुभव व साक्षात्कार के आधार पर अंक देने में हुई गड़बड़ी
झारखंड विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति में गड़बड़ी की जांच करने वाले विक्रमादित्य आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नियुक्तियों में अनुभव और साक्षात्कार के आधार पर दिए जाने वाले अंक में गड़बड़ी की गई। जिस नियुक्ति में केवल साक्षात्कार लिया गया उसमें प्रतिदिन परीक्षाफल नहीं देकर कई महीने बाद अनुमान के आधार पर अंक दिए गए।
आयोग ने कहा है कि नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान उजागर हुए वीडियो-सीडी में जिन लोगों के बीच बातचीत हो रही है, उससे भी नियुक्ति में अनियमितता सिद्ध होती है। नियुक्ति में कई उत्तर पुस्तिका दो वर्षों के बाद लिखी गई है। उत्तर पुस्तिका की फॉरेंसिक जांच में यह बात सामने आयी है। जांच में पाया गया है कि उत्तर पुस्तिका उस समय की नहीं लिखी हुई थी जिस समय परीक्षा हुई थी।
सहायक की नियुक्ति की पात्रता स्नातक थी। जब इसकी परीक्षा हुई तो उत्तर पुस्तिका जांचने के लिए गैर स्नातक व्यक्ति को परीक्षक नियुक्त किया गया और मनमाने तरीके से अंक देकर चहेते लोगों की नियुक्ति की गई।
जस्टिस विक्रमादित्य आयोग ने राज्यपाल को पिछले माह रिपोर्ट सौंपी थी। इसका अध्ययन करने के बाद राज्यपाल ने कार्रवाई के लिए अध्यक्ष के पास भेजा दिया है। इससे पहले विधानसभा में न्यायिक सेवा के अधिकारी को सचिव नियुक्त किया गया है।
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